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Friday, April 2, 2010

जो डरा वो मरा

Not amongst the best of my creations.. but still this sweet little poem keeps a special place in my heart..this is the first ever poem i wrote...and today i found it accidently.. here it goes...

रूह काँप सी गयी थी मेरी...
जब हुई रात और भी अँधेरी....
एक दिन को गया था छत पर अपने...
पता नहीं क्यूँ डर लगे पनपने...

                                                     मुझे हुआ ऐसा प्रतीत...
                                                     छू कर गयी जो मुझे पवन शीत... 
                                                     मुझे हुआ ऐसा प्रतीत -

  मैं खड़ा  हूँ रण-भूमि मैं..तरकश में न हैं बाण मेरे 
या मुझ marterazzi को पड़ी हो head-butt zenedin zidane से रे...
या मैं कैदी कोठर में और चारो तरफ लगे हो पहरे...
या जैसे एक आशिक ने खाए हो जब जब जख्म गहरे...

                                                   मुझे हुआ ऐसा प्रतीत ...
                                                   छू कर गयी तो जो पवन शीत...
                                                   मुझे हुआ ऐसा प्रतीत...
मैं वीराने छत पर जब देख रहा था तारे...
एक आवाज़ से गिर पड़ा मैं खौफ क मारे...
एक प्रती बिम्ब भी मुझे दिखी.. 
और तभी लगे पेड़ भी हिलने...
शुक्र है! वो मेरी मम्मी थी..
अब डर का पारा लगा था गिरने... :-D
                                                                            

Sunday, March 28, 2010

Good Morning Sir..!!

The time when we came to this college.. we faced something which was all new to us.. Ragging.. Though it was never harsh.. but still the fear always remained.. Seniors seemed to get overexcited every time the herd moved through their territory..They used to yell and scream... It was like pets left in the Jungle.. :D

Senior:   लागू   ड्रेस  कोड   हर   हाल  चाहिए...
             तीसरा  बटन  पूरा  लाल  चाहिए...
             देखते  रहो  वो  तीसरा  बटन...
             दाढ़ी  मूछ  साफ़  छोटे  बाल  चाहिए..


1st year :   कटे  हुए  बाल  को  फिर  से  काट  कर  ...
                 ताज़ी  क्वारी  मूछ  को  साड़ी   छाँट  कर..
                सर  जो  कहे  जोर  से  डांट  कर...
                हाथ  ऊपर  कर  मैं  दोड़ता   रहूँ...
                "गुड मोर्निंग सर" मुहं  से  बोलता  रहूँ...!!


बोल गया  electronics  को  एक  दिन  ECE ... 
उस  दिन  मत  पूछो  कैसे  मेरी  रात  कटी....
senior  बोले  क्या  करने  आये  हो  diploma ..
पूरा  नाम  क्या  जुबान  पर  मुश्किल  होता  ढोना..
फिर ..फिर क्या...


रात  भर  बैठ  कर  सेनिओरों  का  नाम  रटा..
दो  ही  दिन  मैं  मेरा  दो  किलो   वजन  घटा..
Digital -Analog  क़ी  file   ready   कर चुका    हूँ...
आप   का  order    हो   तो  सुस्ताने  के  लिए  रुका  हूँ...
Sir जी ..!! मैं तो 1st year  का  छात्र  हूँ...
आप सबो   क़ी  ही  दया  का   मैं  पात्र  हूँ...
आप   जलधर   नहीं  तो  मैं  सूखी  बरसात   हूँ...
आप  का  प्रकाश  नहीं  तो   अमावास   रात   हूँ...  :)

Wednesday, October 28, 2009

Haqiqat...

कहने को तो ये बात थोडी अजीब है... पर हमारी ज़िन्दगी की हकीकत ...और ...बेहद करीब है... ये तो हम जानते ही हैं के इस संसार में बड़ा ही 'rush' है.. अरे तभी तो हमारी ढेरों होती 'crush' हैं... उम्र की सीमा है.... तभी वो कभी जूनियर कभी सीनियर ... कभी टीचर तो कभी नर्स है.... ये दिल कमबख्त अपने पास रहा ही कब है... कभी छूटता सिनेमा हॉल में..कभी फिसलता कोचिंग क्लास में... कभी ट्रेन की कोच में...और कहीं नही तो.... हर दस मिनट में तो सामने से गुजरती कॉलेज की बस हैं... भाई इस दिल का तो खूबसूरती कुछ ऐसे खीचती attention हैं... बस इसीलिए तो इस integer की दुनिया के बीच में भी fraction हैं... अरे अब टूटना तो है ही...हम नादान जो ठहरे ... अब माना की जख्म पड़े हैं गहरे... पर कह तो हमी पाये...वो तो थे बहरे.... भाई इसी लिए तो ..क्यों रोते और रुलाते.... अब छोडो भी कल की बातें .... चलो ढूँढ़ते हैं नए चेहरे .!