Monday, March 24, 2014

Kashmir tu.!


झील की ख़ामोशी में खुद की धड़कन सुन पाता हूँ,
फिर लफ़्ज़ों को बुनता हूँ और उनकी धुन बनाता हूँ|
आज बादलों में खींच डाला हमने भी चेहरा तुम्हारा,
और बाग़ में फिर लॆट कर मैं गीत कोई सा गाता हूँ| 



     
काश्मीर की वादियों में जमी बर्फ जैसी नर्म सी,
कुल्लड़ वाली चाय की तरह मीठी भी तू गरम भी, 
उर्दू के हर लफ्ज़ जैसी तुझमे है सरगर्मियाँ, 
ठंडी हवा के झोकों जैसी थोड़ी सी बेशरम भी|
    





ये पतली-पतली राहें मुड़ा करती हैं लटक-मटक कर,
मेरी गली से जब गुज़रा करती थी तू जैसे इतरा कर,     
अपने लड़कपन की हरकत आज याद आगयी एक तब,
सूरज को पीछा करते देखा दरख्तों से छिप-छिप कर|



 
                   
तेज़ नदियों में जब लहर दर लहरें उठा करती है, 
जैसे के तेरी करवटों से बिस्तर पे सिलवटें पड़ती है|
फिजा में घुली महसूस की हमने यहाँ घबराहट पर,        
इश्क में तो पूरी दुनिया ही शुरू-शुरू में डरती है|


 
 
इन फूलों पे शबनम तेरे ओंठों पे नमी सी लगती है
आज,अभी, इधर तेरी सबसे ज्यादा कमी लगती है 
रात में घाटियां घरों की रौशनी से जगमग तो है,
"पर ये रौशनी की चीजें जनाब ठगा भी खूब करती हैं" 

12 comments:

  1. बहुत खूब ... काश्मीर कि वादियों को प्रेम कि महक से रोशन कर दिया ...
    लाजवाब ...

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    1. thank you uncle :)
      jab aap log appreciate karte ho to hum logon ko motivation mila karti hai kavitayen padhnte-likhte rehne ki!

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  2. I have always loved the similes and analogies in your compositions.. Good one!

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  3. bahut badhiya,,,last para toh superb:) thumbs up

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  4. OMG... bahut khoob shivi...dil khush ho gaya..last para ne to jaan le li...
    great job..keep it up! :)

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  5. nice hai :)
    Specially, loved this :
    उर्दू के हर लफ्ज़ जैसी तुझमे है सरगर्मियाँ ,
    सर्द हवा के झोकों जैसी थोड़ी सी बेशरम भी . .

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  6. bahut khhobbbb.... bahutt khoobb....

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