पहली बार ग़ज़ल लिखने का प्रयास । पढ़ने से पहले आपको उस मंजर से रू-ब-रू करा दूँ जिससे ये ग़ज़ल अपने वजूद में आई । हर सुबह की तरह इस रोज़ भी में सुबह अपनी बालकनी में बैठा चाय की चुस्कियाँ भरता हुआ अखबार टोह रहा था कि तभी मेरी नज़र सामने की बालकनी से निकलती दिन की ताज़ा तरीन खबर पर पड़ती है , मेरी नयी पड़ोसन पर । :-)
नहाकर निकली है नज़्म आज अपनी बालकनी में,
मेरी कलम को मिली बज़्म आज अपनी बालकनी में,
बन गया चाय का कप फिर से मदिरा का प्याला
उम्र भर की फ़िक्र हुई ख़त्म आज अपनी बालकनी में,
करे आज़ाद जुल्फों को खींच कर तौलिया ऐसे
गिरी बिजली दिया है जख्म आज अपनी बालकनी में,
गर्दन हिला कर देर कुछ जुल्फों को लहराया
चली पुरवई हुई सिहरन आज अपनी बालकनी में,
एक ओर कर के जुल्फें तौलिये से जोर झटका
क़ि बारिश हुई झमा झम आज अपनी बालकनी में,
मेरी ओर मुड़ी गर्दन तो सूरज से हटा बादल
क़ि सतरंगी हुआ मौसम आज अपनी बालकनी में,
"कुश" की नज़र अटकी जुबां भी रास्ता भटकी
लेखनी ने दिया फिर संग आज अपनी बालकनी में ।
Kush sahab jis mohtarma ko dekh kar aapne ye gajal likh dala apne balcony main,unko rubaroo karaya ki nahi is gajal se😉
ReplyDeleteHahah. . Na bhai. . "Ajab sa risk hai" :P
Deleteबन गया चाय का कप फिर से मदिरा का प्याला
ReplyDeleteउम्र भर की फ़िक्र हुई ख़त्म आज अपनी बालकनी में...
वाह बहुत खूब ... सुबह सुबह रूमानी हो गए आप ... मज़ा आ गया इस लाजवाब ग़ज़ल के हर शेर पर ...
काश हर हर में हो एक बालकनी ...
बहुत बहुत शुक्रिया sir.
Deleteऐसे ही लिखते रहें मस्त गजलें ...
ReplyDeletepadosan , balcony , chai aur kush ... maza aa gaya :)
ReplyDeleteun mohtarma ko bhi is ghazal se ru-b-ru kara hi do :)
बहुत उम्दा भाई...................
ReplyDeleteWaah.....aakhri do chhnd ...jbrdst...bhot khoob....
ReplyDeleteWaah.....aakhri do chhnd ...jbrdst...bhot khoob....
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 06 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeletesir aapka blog kafi achi hai
ReplyDeletewww.cgdekho1.blogspot.com