देश के बाहर की दीवाली, ,
सूनी सूनी खाली खाली. .
दो दीपक आँगन मे जलाएँ
एक शाम बिता लें मतवाली. .
जगमगा उठा होगा घर भर, ,
फुलझड़ी-बल्ब-अनार-झालर. .
उन यादों के नाम आज मैं खूब दिए जलाउँगा. .
सूनी सूनी खाली खाली. .
दो दीपक आँगन मे जलाएँ
एक शाम बिता लें मतवाली. .
जगमगा उठा होगा घर भर, ,
फुलझड़ी-बल्ब-अनार-झालर. .
छत की मुंडेर का वो कोना,
पर आज पड़ा होगा सूना. .
हर साल जहाँ पर जाकर मैं, ,
एक दिया जलाया करता था. .
लौ कहीं ना बुझ जाए उसकी. .
इस एक ख्याल से डरता था. .
उन यादों को याद कर मैं आज की शाम बिताउँगा. . .
शुभकामनाएं--
ReplyDeleteरचो रँगोली लाभ-शुभ, जले दिवाली दीप |
माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||
घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर, व्यापारी |
नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
दो बच्चों का साथ, रचो मिल सभी रँगोली ||
शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteरवि को रविकर दे सजा, चर्चित चर्चा मंच
ReplyDeleteचाभी लेकर बाचिये, आकर्षक की-बंच ||
रविवार चर्चा-मंच 681
वाह बहुत भावमयी रचना।
ReplyDeletethank you :)
Deleteवाह दिवाली पे दिल की बात लिख दी आपने कुश ...
ReplyDeletethank you uncle :)
Deleteपरदेश में दिवाली...
ReplyDeleteसचमुच खाली खाली...
हमने भी यही बात महसूस की!
सच में परदेस में त्यौहार की रौनक कहाँ ...? सुंदर रचना
ReplyDeleteजैनेटिक है जी
ReplyDeleteवाह जी वाह
पिता शेर तो बेटा
सवा शेर !
भाव जगत की रचना है रागात्मक स्मृतियों से संसिक्त .
ReplyDelete