Wednesday, September 19, 2012

आज के व्यंजन

सिलिंडर अपने सात लग गये,
पूरे "हाथ" के हाथ ठग गये.!

अपनी दाल भी ना गल सकी. .
ना सीटी कूकर से उछल सकी.!


हाँ मगर. .



उनकी तसल्ली , उनकी दलीलें . .
सुन सुन कर पर कान पक गए . .

और  उबल भी  जाने हैं  जज़्बात. .
गरम हो रहा है परिवेश. .

टिघल भी चुकी हसरतें. .
जला असम, झुलसता  देश. .

..आज के व्यंजन मे किये जाते पेश!!

4 comments:

  1. सोते कवि को दे जगा, गैस सिलिंडर आज ।

    असम जला, बादल फटा, गरजा बरसा राज ।

    गरजा बरसा राज, फैसला यह सरकारी ।

    मार पेट पर लात, करे हम से गद्दारी ।

    कवि "कुश" जाते जाग, पुत्र रविकर के प्यारे ।

    ईश्वर बिन अब कौन, यहाँ हालात सुधारे ।।

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  2. उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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