I heard this in the news that a group of friends took an initiative to clean the potholes in the roads of Chennai at night, as a part of 60th Independence celebration. They planned it out and have access to tar, cement etc.
True! Fixing roads in the night on the eve of independence day is certainly not the way to spend a free evening for many of us, but have you ever thought of the “by the people” part of a democracy?? We people complain about the ‘of the people and for the people’.Until and unless we contribute to the democracy, we can’t expect it to work..so guys! its time to realize our responsibility and get poised for the Action...
६० सेकेण्ड ज़िन्दगी के अपने निछावर कर दो…
ये साठ बरस आज़ादी के सब कुछ बराबर कर दो…
अब कोई हाथ न फैलेगा न आगे सर झुकेंगे…
ये कदम हमारे मंजिल पाने क पशचात रुकेंगे…
याद करो उनकी क़ुरबानी… सजे थे सीमा पर सेनानी ...
सजे थे सीमा पर सेनानी जैसे मिली सजा हो...
बेहाल हो गयी माँ-बेहेन-बेटी-बीवी रो-रो...
थर थर हार कपाने वाली थी तूफानी रांतें ...
पर हो गये थे वे कुरबां ,, एक हिन्दुस्तानी क नाते
याद करो उनकी क़ुरबानी…जिनपे नाज़ करती जवानी...
जो खून बहा था उस ज़मी पर ,, वो खून था हिन्दुस्तानी…
है खून वही बहता आज भी नव्ज़ में हमारी…
ये पुकार है वक़्त की…है करनी पूरी तैयारी…
के अब न टिकने पाए यहाँ ये चारी या मक्कारी…
ये पुकार है वक़्त की…है करनी पूरी तैयारी…
इस देश पे संकट भारी है ...भारत माता पुकारी है
बर्बरता और सभ्यता में आज शीत युद्ध भी ज़ारी है...
इसलिए-:
मुंबई से असाम से…
यहाँ मौजूद सारी आवाम से....
मैं कहता हूँ ,, मैं कहता हूँ…
के कहो यही सब खुद से कि -:
"मैं पहले एक हिन्दुस्तानी हूँ और हिन्दुस्तान में रहता हूँ ..."
आपको लगता होगा कि मैं जज्बातों में बहता हूँ...
पर कसम खुदा कि... मैं '"शिवा" जो कहता हूँ ...सच कहता हूँ...!!देख क सम्मुख चट्टानें भी लहरें भला कहाँ रुक जाती ...
तू कदम बढ़ा के देख ,, तेरे कदम स्वं चूमेगी ख्याति...
किस बात का डर तू आगे बढ़ ... बहता चल तू एक लहर की भांति…
कल के भारत की जिम्मेदारी
है अपने कन्धों पे सारी ...
तस्करी कालाबाजारी अपहरण आतंकवाद
सरे आम होती हत्याएं... धर्म-जात पे होते विवाद
को ख़त्म गर करना है-२…
एक बार फिर से गर खुली हवा में लम्बी सांसें भरना है...
तो आओ ,, आज मेरे हांथों पे तुम अपने हाथ भी धर दो
के साठ सेकण्ड ज़िन्दगी के अपने निछावर कर दो…..
६० बरस आजादी क सब कुछ बराबर कर दो…..!!
hey shiva, i like the "bye the people" part :P:D
ReplyDeleteTough issue & very simply said :)
well done :)
thank you abhishek for such a nice compliment...
ReplyDeletenice lines friend....truly its a responsibility of a poet to inspire to rise against every odd and every evil..u are doing it quite well
ReplyDeletewell said.."Jahan na pahunche ravi,whan pahunche Kavi"..gud work...i like the last 5-6 lines very much :)
ReplyDeletekeep it up :)