Sunday, July 22, 2012

बचपना.!

हम बड़े हुए और भूल गये. .
बचपना कहाँ पे बसता है . .
इस Plastic की दुनिया मे . .

दिल खोल के कौन ही हंसता है ?

बचपना दिल मे ही कहीं दबा. .
बाहर आने को बिलकता है. .
इस Concrete की दुनिया मे,
घर भी एक जेल सा लगता है. .

बचपन का भोलापन खोता. .
इन्सा-इन्सा को अकड़ता है. .
इस टीका-टोपी की दुनिया में. . 
वो खुदा से भी न डरता है. . 
 
 
क्या उसका है और क्या अपना. .
किस चीज़ के खातिर लड़ता है. . 
बचपन की कुछ आदत अपना. . 
देख जीवन कैसे संवारता है | 


*This poem was written for our Facebook group of school friends.!
 

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