हम बड़े हुए और भूल गये. .
बचपना कहाँ पे बसता है . .
इस Plastic की दुनिया मे . .
दिल खोल के कौन ही हंसता है ?
बचपना दिल मे ही कहीं दबा. .
बाहर आने को बिलकता है. .
इस Concrete की दुनिया मे,
घर भी एक जेल सा लगता है. .
बचपन का भोलापन खोता. .
इन्सा-इन्सा को अकड़ता है. .
इस टीका-टोपी की दुनिया में. .
बचपना कहाँ पे बसता है . .
इस Plastic की दुनिया मे . .
दिल खोल के कौन ही हंसता है ?
बचपना दिल मे ही कहीं दबा. .
बाहर आने को बिलकता है. .
इस Concrete की दुनिया मे,
घर भी एक जेल सा लगता है. .
बचपन का भोलापन खोता. .
इन्सा-इन्सा को अकड़ता है. .
इस टीका-टोपी की दुनिया में. .
वो खुदा से भी न डरता है. .
क्या उसका है और क्या अपना. .
किस चीज़ के खातिर लड़ता है. .
बचपन की कुछ आदत अपना. .
देख जीवन कैसे संवारता है |
*This poem was written for our Facebook group of school friends.!
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