सिलिंडर अपने सात लग गये,
पूरे "हाथ" के हाथ ठग गये.!
अपनी दाल भी ना गल सकी. .
ना सीटी कूकर से उछल सकी.!
हाँ मगर. .
उनकी तसल्ली , उनकी दलीलें . .
सुन सुन कर पर कान पक गए . .
और उबल भी जाने हैं जज़्बात. .
गरम हो रहा है परिवेश. .
टिघल भी चुकी हसरतें. .
पूरे "हाथ" के हाथ ठग गये.!
अपनी दाल भी ना गल सकी. .
ना सीटी कूकर से उछल सकी.!
हाँ मगर. .
उनकी तसल्ली , उनकी दलीलें . .
सुन सुन कर पर कान पक गए . .
और उबल भी जाने हैं जज़्बात. .
गरम हो रहा है परिवेश. .
टिघल भी चुकी हसरतें. .
जला असम, झुलसता देश. .
..आज के व्यंजन मे किये जाते पेश!!
..आज के व्यंजन मे किये जाते पेश!!
सोते कवि को दे जगा, गैस सिलिंडर आज ।
ReplyDeleteअसम जला, बादल फटा, गरजा बरसा राज ।
गरजा बरसा राज, फैसला यह सरकारी ।
मार पेट पर लात, करे हम से गद्दारी ।
कवि "कुश" जाते जाग, पुत्र रविकर के प्यारे ।
ईश्वर बिन अब कौन, यहाँ हालात सुधारे ।।
बहुत सुंदर !
ReplyDeletedhanyavaad.!
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
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