Tuesday, November 15, 2011

परदेस में दिवाली

देश के बाहर की दीवाली, ,
सूनी सूनी खाली खाली. .
दो दीपक आँगन मे जलाएँ
एक शाम बिता लें मतवाली. .

जगमगा उठा होगा घर भर, ,
फुलझड़ी-बल्ब-अनार-झालर. .
छत की मुंडेर का वो कोना,
पर आज पड़ा होगा सूना. .

हर साल जहाँ पर जाकर मैं, ,
एक दिया जलाया करता था. .
लौ कहीं ना बुझ जाए उसकी. .
इस एक ख्याल से डरता था. .

उन यादों के नाम आज मैं खूब दिए जलाउँगा. .
उन यादों को याद कर मैं आज की शाम बिताउँगा. . .

11 comments:

  1. शुभकामनाएं--

    रचो रँगोली लाभ-शुभ, जले दिवाली दीप |
    माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||
    घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
    लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर, व्यापारी |
    नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
    दो बच्चों का साथ, रचो मिल सभी रँगोली ||

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  2. रवि को रविकर दे सजा, चर्चित चर्चा मंच

    चाभी लेकर बाचिये, आकर्षक की-बंच ||

    रविवार चर्चा-मंच 681

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  3. वाह बहुत भावमयी रचना।

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  4. वाह दिवाली पे दिल की बात लिख दी आपने कुश ...

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  5. परदेश में दिवाली...
    सचमुच खाली खाली...
    हमने भी यही बात महसूस की!

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  6. सच में परदेस में त्यौहार की रौनक कहाँ ...? सुंदर रचना

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  7. जैनेटिक है जी
    वाह जी वाह
    पिता शेर तो बेटा
    सवा शेर !

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  8. भाव जगत की रचना है रागात्मक स्मृतियों से संसिक्त .

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