(This poem is divided into two parts which shows two different mindsets.
one contrasting the other; but unfortunately it's been felt by the same person.)
one contrasting the other; but unfortunately it's been felt by the same person.)
मेरे हांथों से तेरे हाथ जो फिसल गए...
मेरी आंखों से तो आंसों निकल गए...
अब दिन कटते हैं तेरी यांदों में सनम...
अब किसपर मैं लिखूंगा ग़ज़ल नए...
जज़्बात....जज्बांतों में तो हम बह गए...
पर वो हैं के उस पार ही रह गए....
पर वो हैं की उस पार ही रह गए!
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मेरी आंखों से तो आंसों निकल गए...
अब दिन कटते हैं तेरी यांदों में सनम...
अब किसपर मैं लिखूंगा ग़ज़ल नए...
जज़्बात....जज्बांतों में तो हम बह गए...
पर वो हैं के उस पार ही रह गए....
पर वो हैं की उस पार ही रह गए!
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तुझको समझाया पर तू समझ न पायी...
देख ली मेने तेरी बेवफाई...
तू तो गई अब ये यांदें भी लेती जा...
पर सुन ले खिलौना नही होता है दिल किसी का...
ये हालत ये हालात मैं कैसे बयां करूँ...
कोसता हूँ ख़ुद को के मेने तुझको ही चाहा क्यूँ?
देख ली मेने तेरी बेवफाई...
तू तो गई अब ये यांदें भी लेती जा...
पर सुन ले खिलौना नही होता है दिल किसी का...
ये हालत ये हालात मैं कैसे बयां करूँ...
कोसता हूँ ख़ुद को के मेने तुझको ही चाहा क्यूँ?
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ati sundar rachna aur kalpana...
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