Wednesday, October 21, 2009

अल्फाज़-ऐ-इश्क..

(खुशनुमा मौसम है और मदमस्त हवाएं
आपकी इजाज़त हो तो एक गीत सुनाएँ... )

अल्फाज़-ऐ-इश्क
तेरे ओंठो को छू कर जो निकले
तेरे साँसों की गर्मी से ये पत्थर भी पिघले

जब भीड़ में भी तन्हाई का एहसास होने लगे
तब फासले का गम होके नम पलकें भिगोने लगे

इन महफिलों मै ये आखें उन्हें ढूँढती फिरे
और जब दिखें वो सामने ये पलकें जा गिरें

हर लव्ज़ तेरे दिल पे मेरे करते खलबली
तेरी अदा झूमती लता मुस्कान खिलती कली

छुई हथेली जान ले ली ये दिल रहा मेरा
तेरे लिए !अज़ीज़ क्या देहलीज़ क्या पेहरा

जी
माफ़ करना गर खता कोई हुई हमसे
मैं बिरही बिलख रहा हूँ तेरे बिलगने से

तकदीर से था फ़कीर, कैसे मिल गई जागीर
आखें तेरी मेरी
सलाखें हुस्न हुई ज़ंजीर

तुझसे से मेरी सुबह है तू ही आफताब है
बे-ऐब होती न हकीकत तू एक ख्वाब है.!

3 comments:

  1. kisi ko kuch jyada hi yaad karke likhe hain lagta hai.....par jo bhi hai....its just awesome......

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  2. hey its my fav too....:) jst love it.

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